आज रात २ बजे कुछ मित्र ध्यान करने आये, और करने लगे चर्चा, एक ने पूंछा कि मन से मुक्ति भला कैसे सम्भव है....ध्यान में तो हम सबसे पहले उसी से लड़ते है.
"सर्वप्रथम मुक्ति का अर्थ तो समझ लो अन्यथा मुक्ति की अपनी अवधारणा से ही मुक्त नहीं हो पाओगे ....
मुक्ति का अर्थ स्वयं के द्वारा बनाई हुई एवं दूसरों द्वारा आरोपित अवधारणाओं तथा भ्रांतियों से छुटकारा पा लेना ....."
अब ध्यान करो ......मन से लड़ने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
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