ध्यान का प्रारंभ विश्वाश से मत करो क्योंकि जंहा विश्वाश है वंहा अविश्वाश के पैदा होने की पूरी संभावना होती है. , इसलिए ध्यान का प्रारंभ विश्वाश और अविश्वास, दोनों के परे से ही करना चाहिए.
अर्थात ध्यान का प्रारंभ सिर्फ और सिर्फ स्वयं से ही करना चाहिए.
क्योंकि स्वयं का अस्तित्व शंकारहित है , यदि इस पर शंका करते भी हो तो भी आपका अस्तित्व स्वयं सिद्ध है.....
Yogi anoop
Yoga guru from Delhi
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें