"सब कुछ भगवन कर रहा है, मै कुछ नही करती, बिना उसके एक पत्ता तक नही हिल सकता है।"
मैंने पूंछा की भगवान के बारे में जो आप प्रवचन कर रहीं हैं, क्या यह भगवान् ही करा रहा है।
"बिल्कुल वही करा रहा है "
क्या जो लोग किसी को गाली देतें हैं, यह भगवान ही कराता।
"नही यह भगवान् नही बल्कि उसकी अज्ञानता है, जो उससे ग़लत कार्य कराती है"
तो क्या ग़लत कार्य व अज्ञानता भगवान् के अधिकार में नही होता।
"नही यह ग़लत कार्य तो उसके पूर्व जन्म का दुष्कर्म होता है"
हे माता जब भगवान् ही सब कुछ कराता है तो पूर्व जन्म में जो उस व्यक्ति ने दुष्कर्म किया तो उसका रिशपोंसिबल भला कौन? क्या अज्ञानता भगवान् के अधिकार में नही होता है ?
सत्य तो यह है कि हम अपने हर एक कार्य को भगवान् पर छोड़ देतें हैं।यद्यपि छोड़ दें तो समस्या का समाधान हो जाय, पर केवल बोलते हैं कि भगवान् सब कुछ कर रहा है, उस पर अमल नही करते हैं स्वयं पर रिस्पोंस्बिलिती कभी लेते ही नही ।
इस सिद्धांत से स्वयं के अन्दर परिवर्तन कभी भी नही हो सकता है । भगवान् आधार है हमारी एकाग्रता का। वो हमारे अन्दर मन की शक्ति को बढाता है । उसका उपयोग हम कैसें करे ये तो हमें ही सीखना पड़ेगा ।
मैंने पूंछा की भगवान के बारे में जो आप प्रवचन कर रहीं हैं, क्या यह भगवान् ही करा रहा है।
"बिल्कुल वही करा रहा है "
क्या जो लोग किसी को गाली देतें हैं, यह भगवान ही कराता।
"नही यह भगवान् नही बल्कि उसकी अज्ञानता है, जो उससे ग़लत कार्य कराती है"
तो क्या ग़लत कार्य व अज्ञानता भगवान् के अधिकार में नही होता।
"नही यह ग़लत कार्य तो उसके पूर्व जन्म का दुष्कर्म होता है"
हे माता जब भगवान् ही सब कुछ कराता है तो पूर्व जन्म में जो उस व्यक्ति ने दुष्कर्म किया तो उसका रिशपोंसिबल भला कौन? क्या अज्ञानता भगवान् के अधिकार में नही होता है ?
सत्य तो यह है कि हम अपने हर एक कार्य को भगवान् पर छोड़ देतें हैं।यद्यपि छोड़ दें तो समस्या का समाधान हो जाय, पर केवल बोलते हैं कि भगवान् सब कुछ कर रहा है, उस पर अमल नही करते हैं स्वयं पर रिस्पोंस्बिलिती कभी लेते ही नही ।
इस सिद्धांत से स्वयं के अन्दर परिवर्तन कभी भी नही हो सकता है । भगवान् आधार है हमारी एकाग्रता का। वो हमारे अन्दर मन की शक्ति को बढाता है । उसका उपयोग हम कैसें करे ये तो हमें ही सीखना पड़ेगा ।