मंगलवार, 23 जून 2009

डोगा; yoga for dog


कुत्तों को भी टेंशन अब् होती है , वो सो नही पाते क्योंकि उनके सपने में बुरे बुरे से ख्याल आते हैं, वे भी यादों में अब् मरते हैं , छुट्टियों में होटल की सैर अब् वे करते हैं , पर फिर भी शान्ति मुनासिब नही, इसीलिये अब् कुत्ते भी योगा करतें हैं।
डोगा सर्वांग आसन; यह एक ऐसा आसन है जो मस्तिस्क के समस्त विकारों को दूर कर देता है। कृपया इसे अवस्य करें ......

मंगलवार, 16 जून 2009

GOD

pradosh जी

क्या हम उसे कोई वस्तु मानते हैं जिसे देखा और अनुभव किया जा सके। सामान्यतयः ईश्वर की धारणा विश्वाश पर चलती है। पर ध्यान विश्वाश पर नही चलता है । इसका ध्यान से कोई मतलब नही होता है । ध्यान प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित है जिसमे हमें यह pata hota है की विचारों से हमें दुःख होता है, काम क्रोध मोह लोभ हमें jakde हुए है । tabhee to हम इनके पार जाने की sochten है । ध्यान हमें इनके पार ले जाता है। विचारों के पार जाना होता है , अर्थात विचार विहीनता की स्थिति । इसकी अनुभूति मुझे होती, इसे ईश्वर कह लो या कुछ और ।

रविवार, 14 जून 2009

Inner engineering

मामला चाहे जितना भी बिगड़ जाय उसे सुधारा जा सकता है। पर शर्त ये है कि सुधारने की हममे शिद्दत होनी चाहिए। मन को उस ओर अच्छी भावना से लगना चाहिए । और इसकी सुरुवात सबसे पहले हमें स्वयं से ही करना चाहिए। इस बात में मुझे गांधी , आधुनिक युग में सबसे अच्छे लागतें हैं क्योंकि उन्होंने सबसे पहले बदलाव का प्रारंभ स्वयं से ही किया । मुझे अपना अनुभव बताता है कि अन्तरनुभव जीवन के सत्य को बतला देता है। आज का राजनैतिज्ञ इस अनुभव से वंचित है क्योंकि उसे अन्तरनुभव जैसे वस्तु से तो लेना देना ही नही।


मेरा अपना अनुभव है कि, यदि स्वयं का अच्छा आकलन किया जाय तो स्वयं के अन्दर की कमजोरी को पूरी तरह से ख़त्म तो नही बल्कि कम जरूर किया जा सकता है। इसके बाद ही इस समाज के सुख दुःख को अनुभव किया जा सकता है ।

शुक्रवार, 12 जून 2009

हमारा ग़लत स्वभाव

जो कमजोरी सिर्फ़ हम ही ख़त्म कर सकते है, हमारे अलावा और कोई नही कर सकता है, उसे हम गुरु या भागवान से ख़त्म करवाने की कोशिश करतें हैं। जैसे हमारे अन्दर मन के रोग हमने स्वयं पैदा कियें हैं और उसे गुरु से ख़त्म करवातें हैं। आधुनिक गुरु घंटाल भी ऐसे है कि शिष्य को ........इसी के साथ साथ एक और विडम्बना है हमारे इस देश में कि जो प्रकृति व भगवान् के अधिकार में है उसे हम स्वयं अधिकार करने की कोशिश करतें हैं। जैसे - यह शरीर प्रतिपल मर रही है पर इसे अनंत काल तक जिन्दा रखने के लिए कितना कोशिश करतें हैं। जब तक हम इसे नही समझेगें तब तक हमारी समस्या का समाधान संभव नही है।

गुरुवार, 11 जून 2009

योगी बहता है !

"योगी बहता है , भोगी भी बहता है, सिर्फ़ बहता वो नही जो गृहस्थ है। गंगा की धारा बहती है, बाढ़ की धारा भी बहती है, सिर्फ़ वो जो बहता नही वो है कुँए की धारा।"
योगी बहता (घुमक्कड़ )है तो स्वयं को तथा जनमानस को लाभ पहुंचाता है । भोगी घूमता है तो दूसरों को नुकसान तथा अंततः स्वयं का भी नुकसान करता है।

बुधवार, 10 जून 2009

HOW TO SIT BEHIND FIVE SENSES;

When I try to think about myself, when I try to imagine myself, when I try to see myself, every time I got nothing. This nothingness had never satisfied me. Perhaps, I was trying to find more way to achieve myself, to know myself (everything). I was deeply frustrated, because seeming looser. But one day when I met to a spiritual master Abhilash Das, who was a great guru and genuine follower of Kabeer, addressed to me about myself. “Whatever you feel in this whole outer world, even your body, senses, and mind, are separate from you”. The existence of self is totally separate from ours. Try to make difference between I and ours, you and yours.
Now I started practice to know this separateness. Finally I got the ultimate way “how to sit behind our self palace”. This was the only way for achieving me. Earlier I was doing everything, but got nothing, now doing nothing and got everything. Everything doesn’t mean the outer worlds, but the level of inner satisfaction which I had achieved.
Chaitanya Meditation; let sit straight in any meditative pose with close eyes. Place should be dark where-ever you sit. Don’t try! Let see your closed eyes, as a great observer of this sense. As you start to observe around eyes, eye brow, inner part of eye, you will start feeling relax. Because you are making separate to yourself from one of the great sense, eyes. Like this let practice with other four senses.



शनिवार, 6 जून 2009

क्या भगवान् ही सब कुछ करता है?


"सब कुछ भगवन कर रहा है, मै कुछ नही करती, बिना उसके एक पत्ता तक नही हिल सकता है।"
मैंने पूंछा की भगवान के बारे में जो आप प्रवचन कर रहीं हैं, क्या यह भगवान् ही करा रहा है।
"बिल्कुल वही करा रहा है "
क्या जो लोग किसी को गाली देतें हैं, यह भगवान ही कराता।
"नही यह भगवान् नही बल्कि उसकी अज्ञानता है, जो उससे ग़लत कार्य कराती है"
तो क्या ग़लत कार्य व अज्ञानता भगवान् के अधिकार में नही होता।
"नही यह ग़लत कार्य तो उसके पूर्व जन्म का दुष्कर्म होता है"
हे माता जब भगवान् ही सब कुछ कराता है तो पूर्व जन्म में जो उस व्यक्ति ने दुष्कर्म किया तो उसका रिशपोंसिबल भला कौन? क्या अज्ञानता भगवान् के अधिकार में नही होता है ?
सत्य तो यह है कि हम अपने हर एक कार्य को भगवान् पर छोड़ देतें हैं।यद्यपि छोड़ दें तो समस्या का समाधान हो जाय, पर केवल बोलते हैं कि भगवान् सब कुछ कर रहा है, उस पर अमल नही करते हैं स्वयं पर रिस्पोंस्बिलिती कभी लेते ही नही ।
इस सिद्धांत से स्वयं के अन्दर परिवर्तन कभी भी नही हो सकता है । भगवान् आधार है हमारी एकाग्रता का। वो हमारे अन्दर मन की शक्ति को बढाता है । उसका उपयोग हम कैसें करे ये तो हमें ही सीखना पड़ेगा ।

बुधवार, 3 जून 2009

my diary 3-3-1998

जब भी हमे कभी इस बात का ज्ञान हो जायकि अमुक नाम की परम्परा वर्तमान समाज के हित में नही तो हमें उसको बदलने का प्रयास अवस्य करना चाहिए । बुद्धि का सम्पूर्ण कर्तव्य है की अपने से जुड़े समस्त अंगों का निरीछन करे और उसे एक ऐसी गति प्रदान करे जो स्थिर एवं पारंपरिक हो क्योंकि यदि ऐसा न हुआ तो समाज में संगठन की छमता का छीन होना प्रारम्भ हो जाएगा। अंततः यही होगा की अज्ञानता ही राज्य करेगी । जाती , वर्ग तथा राज्य में विभाजन एक आम बात हो जायेगी ।
हम कुछ ऐसा करें कि इसमे परिवर्तन हो सके ।
वह सबसे बड़ी कमजोरी क्या है जो इस महान रास्ट्र को दीमक कि भांति चाटे जा रही है । मुझे तीन बातों की कमी प्रमुख रूप से दिखाई देती है; अज्ञानता , लक्ष्यविहीनता , और आलस्य की कमी। इन तीनो में कौन पहले और कौन बाद में है , यह कहना मुश्किल है पर अज्ञानता को ही हमें प्रमुखता पर रखना होगा। क्योंकि ज्ञान के आने पर दिशा का निर्धारण स्वतः हो जाता है । दिशा के निर्धारण होने पर जीवन में एक गति आ जाती है । हम सभी भासनबाजी करने में माहिर हैं कर्म में नही । जो कर्म में माहिर हैं उन देशों को देखो, वे कंहा पर हैं ।

सोमवार, 1 जून 2009

Black vs. White




This poem was nominated for best poem of 2005 written by an African child:

When i was born, i black
when i grow up, i black
when i go in sun, i black
when i scared, i black
when i sick, i black
& when i die, i still black

& you white fella..

when you born, you pink
when you grow up, you white
when you go in sun, you red,
when you cold, you blue
when you scared, you yellow
when you sick, you green
& when you die, you gray

& you calling me colored??


Comment please…………………………
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